नव ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच लद्दाख में बीते कई दिनों से चला आ रहा सैन्य गतिरोध तो सुलझ गया। लेकिन चीनी तंबुओं ने भारत को कई सबक दे दिए हैं। फिलहाल अनसुलझी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर इसके फिर सामने आने की आशंकाएं नहीं मिटी हैं।
हालांकि ताजा वाक्ये के बाद दोनों मुल्कों के सैन्य व राजनयिक पक्षों के बीच ऐसी स्थितियों के समाधान के लिए हॉटलाइन समेत अधिक कारगर तंत्र बनाने के प्रस्तावों को रफ्तार मिल गई है। वहीं नए चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग के इस माह होने वाले पहले भारत दौरे में भी सहमति के नए बिंदु तलाशने पर जोर होगा। सरकारी सूत्रों के मुताबिक 15 अप्रैल से 5 मई तक चले सैन्य गतिरोध के दौरान दोनों मुल्कों के बीच सीमा मामलों पर बने साझा तंत्र की भी कुछ सीमाएं सामने आईं। इस तंत्र के तहत 16 अप्रैल को विदेश मंत्रलय के संयुक्त सचिव ने अपने चीनी समकक्ष से बात की थी। इसके बाद 18 अप्रैल को पहली फ्लैग मीटिंग बुलाई गई थी। हालांकि बीते 25 दिनों में आधा दर्जन से अधिक फ्लैग मीटिंग और बीजिंग में भारतीय राजदूत से जरिये चली कूटनीतिक कवायद में नई दिल्ली को खासी मशक्कत करनी पड़ी।
महत्वपूर्ण है कि दोनों देशों के बीच सैन्य अभियान महानिदेशक स्तर बातचीत के लिए हॉटलाइन स्थापित करने का एक प्रस्ताव काफी समय से लंबित है। बताया जाता है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए दोनों पक्षों के बीच नई व्यवस्थाओं पर विचार संभव है। इस महीने होने वाली चीनी प्रधानमंत्री की पहली भारत यात्रा के दौरान सीमा मामलों पर भी बात होनी है। माना जा रहा है कि भारतीय खेमा सीमा और ब्रह्मपुत्र नदी पर बनाए जा रहे सात चीनी बांधों का मुद्दा भी उठाएगा।
इससे पहले विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद 9 मई को बीजिंग रवाना हो रहे हैं। सैन्य सूत्रों ने लद्दाख में हुए ताजा वाक्ये से सबक लेते हुए सैन्य गश्त और निगरानी के इंतजाम भी चुस्त करने के संकेत दिए हैं। हालांकि बताया जाता है कि दिपसांग इलाके में चीनी तंबुओं की खबर मिलते ही भारत ने भी महज छह घंटे के भीतर अपने तंबू खड़े कर मोर्चाबंदी कर दी थी। भारत ने बीते कुछ समय में लद्दाख क्षेत्र में ढांचागत निर्माण पर काफी जोर दिया है, जिसमें दो माउंटेन डिविजन बनाने से लेकर डीबीओ, फुकचे और न्योमा में अग्रिम मोर्चे पर हवाई पट्टियों को सक्रिय करने जैसे कदम शामिल हैं। दरअसल, भारत की इसी सक्रियता ने चीन के कान खड़े किए। हालांकि भारत यह स्पष्ट कर चुका है कि वह भी चीन की ही तरह अपने सीमांत क्षेत्र में आधारभूत ढांचे को सुधार रहा है।
लिहाजा चीन को एतराज नहीं करना चाहिए। भारत और चीन 1993 से सीमा पर शांति के समझौतों पर वार्ता कर रहे हैं। साथ ही दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच सीमा मामले पर 16 दौर की बातचीत भी अभी तक कोई नतीजा नहीं दे पाई है।