नई दिल्ली [जाब्यू]। कर्नाटक में सात साल बाद सत्ता में वापसी की खुशी के साथ कांग्रेस आलाकमान के सामने मुख्यमंत्री चुनने की भी बड़ी चुनौती है। दक्षिण भारत के इस राज्य में कांग्रेस की दुर्गति का प्रमुख कारण सूबे के बड़े नेताओं की गुटबाजी रही है। जीत के साथ ही मुख्यमंत्री पद के लिए कर्नाटक के तमाम दिग्गजों ने अपना दावा पेश किया है। वैसे तो चार प्रमुख दावेदार हैं, लेकिन सबसे कड़ी टक्कर कर्नाटक से दो केंद्रीय मंत्रियों वीरप्पा मोइली और मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच मानी जा रही है।
पिछड़े वर्ग से आने वाले 73 वर्षीय मोइली केंद्रीय स्तर पर जाना-पहचाना चेहरा हैं और आलाकमान के करीब भी। 1972 में पहली बार विधानसभा के लिए चुने गए और 1992 से 1994 तक राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे। मोइली छह बार विधानसभा चुनाव जीते हैं। उन्होंने 2009 में पहली बार चिकबालपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीतकर आए। तब उन्हें कानून मंत्री बनाया गया था। फिलहाल पेट्रोलियम मंत्री मोइली के पक्ष में उनका अनुभव और रिश्ते सभी कुछ जा रहा है।
मल्लिकार्जुन राज्य में कांग्रेस के सबसे दिग्गज दलित नेता हैं और उनका व्यापक जनाधार माना जाता है। 71 साल के खड़गे लगभग 45 साल से कांग्रेस में हैं और उन्होंने अभी तक अपने सभी नौ विधानसभा चुनाव जीते हैं। 2009 में गुलबर्ग से जीतकर लोकसभा पहुंचे खड़गे को श्रम मंत्री बनाया गया। उनकी दावेदारी बेहद मजबूत है क्योंकि अभी तक कोई भी दलित नेता राज्य का सीएम नहीं बना है।
मुख्यमंत्री पद के तीसरे दावेदार 55 साल के सिद्दरमैया हैं। विधानसभा में विपक्ष के नेता सिद्दरमैया पिछड़े वर्ग के प्रभावशाली नेता हैं और दो बार उप मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। जनता दल में विभाजन के बाद वह एचडी देवेगौड़ा की पार्टी जद-एस में चले गए। 2006 में वह वापस कांग्रेस में लौटे और 2008 में विधानसभा में कांग्रेस के नेता बने। कर्नाटक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और 62 वर्षीय जी परमेश्वर सीएम पद के चौथे दावेदार हैं। खड़गे के बाद वह कर्नाटक के सबसे बड़े दलित नेता हैं। परमेश्वर चार बार विधायक रहे हैं और अक्टूबर, 2010 में उन्हें कांग्रेस विधायक दल का प्रमुख बनाया गया। चुनाव हारने के कारण हालांकि उनका दावा कुछ कमजोर हुआ है।