नई दिल्ली [नव ब्यूरो]। रेलवे घूसकांड पर पांच दिन तक चुप्पी साधे रहे रेल मंत्रालय के अफसर कर्नाटक चुनाव परिणाम के बाद बुधवार को अचानक मंत्री के बचाव में सक्रिय हुए। इनका दावा है कि पूरे मामले में रेलमंत्री के रिश्तेदारों और रेलवे के अफसरों की लिप्तता तो है, लेकिन खुद रेलमंत्री पवन बंसल की कोई भूमिका नहीं है। इसके प्रमाण महेश कुमार के प्रमोशन के सिलसिले में लिए गए उनके फैसलों से जाहिर हैं।
रेलमंत्री के नजदीकी अफसरों के मुताबिक, घूसकांड के लिए मुख्य रूप से महेश जिम्मेदार हैं, जिन्होंने रेलमंत्री से मनचाही पोस्टिंग न मिलने पर उनके रिश्तेदारों से संपर्क साधा और रिश्वत देकर काम कराने की चेष्टा की। महेश को मेंबर स्टाफ बनाने की फाइल 17-18 अप्रैल को मूव हुई थी। इससे तकरीबन एक महीने पहले वह रेलमंत्री बंसल से मिले थे। तब उन्होंने अपने प्रमोशन का मसला बंसल के सामने रखा और मेंबर इलेक्ट्रिकल बनने की ख्वाहिश जताई। इस पर उन्हें बताया गया कि वह पद अभी खाली नहीं है, उन्हें मेंबर स्टाफ बनाया जा सकता है। इस पर उन्होंने अनुरोध किया कि उन्हें मेंबर स्टाफ के साथ मेंबर इलेक्ट्रिकल के सिगनल और टेलीकॉम कार्यो का अतिरिक्त प्रभार दे दिया जाए। बंसल ऐसा आसानी से कर सकते थे, लेकिन उन्होंने नाराजगी जताई और महेश कुमार से तुरंत चले जाने को कहा।
महेश को लगा कि कहीं मेंबर स्टाफ की कुर्सी भी उनके हाथ से न निकल जाए। लिहाजा उन्होंने मंजूनाथ, संदीप गोयल के जरिये मंत्री के भांजे विजय सिंगला से संपर्क साधा व रिश्वत देकर मंत्री का मन बदलने की कोशिश की। इसमें वह सफल नहीं हो पाए क्योंकि संभवत: रेलवे बोर्ड के ही वैसे अफसरों ने जिन्हें उनसे परेशानी थी, इसकी सूचना सीबीआइ को दे दी। अफसरों की दलील है कि रेलमंत्री बंसल चाहते तो महेश को मेंबर इलेक्ट्रिकल की पोस्ट खाली होने तक [दो महीने] इंतजार करने को कह सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्हें सिगनल व टेलीकॉम का अतिरिक्त प्रभार भी नहीं दिया। अफसरों को भरोसा है कि बंसल आरोपों से बच जाएंगे जबकि सारा केस महेश कुमार, उसके मित्र ठेकेदारों व रेलमंत्री के रिश्तेदारों पर सिमट कर रह जाएगा। बंसल इस प्रकरण पर मीडिया से मिलना चाहते थे, किंतु उन्हें स्थिति साफ होने तक ऐसा करने से रोक दिया गया था।