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गुटखे के खिलाफ जंग के सेनापति को सम्मान

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Wednesday, May 08, 2013
पर प्रकाशित: 19:24:34 PM
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मुबंई [ओमप्रकाश तिवारी]। लोकतांत्रिक प्रणाली में ऊंचे पदों पर बैठे लोग अगर ठान लें तो कोई भी समस्या ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकती। यह बात डॉक्टर पंकज चतुर्वेदी को समझ में आ गई थी, इसीलिए गुटखे पर प्रतिबंध लगवाने की उनकी मुहिम इतनी सफल हुई कि आज देश के ज्यादातर राज्यों में पान की दुकानों पर लटकी गुटखे की लड़ियां गायब हो चुकी हैं। इसी मुहिम के परिणाम स्वरूप पंकज चतुर्वेदी को अमेरिका के प्रतिष्ठित जुडी विकेनफेल्ड अवार्ड फॉर इंटरनेशनल टोबैको कंट्रोल से सम्मानित करने की घोषणा की गई है। नौ मई को उन्हें यह सम्मान दिल्ली के इंडिया हैबीटेट सेंटर में दिया जाएगा।

वास्तव में गुटखे के खिलाफ जंग लड़ने का काम डॉ. चतुर्वेदी का नहीं था। उनका तो काम है देश में कैंसर के सबसे बड़े अस्पताल मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में आनेवाले कैंसर पीड़ितों का ऑपरेशन करना और सरकार द्वारा निर्धारित अपना वेतन लेना। लेकिन टाटा अस्पताल के जिस मुख कैंसर वार्ड में एक बार घूम भर लेने से वर्षो से गुटखे की लत लगाए बैठे व्यसनी भी अपनी लत बिना कहे छोड़ देते हों, उसी वार्ड में डॉ. चतुर्वेदी को दिन भर में न जाने कितने चक्कर काटने पड़ते हैं। इसी दौरान डॉ. चतुर्वेदी के मन में यह विचार आया कि इलाज से आगे बढ़कर कुछ करना चाहिए। ताकि इस कैंसर जैसी बीमारी को जड़ से उखाड़ा जा सके।

वह जानते थे कि यह बीमारी गुटखा, तंबाकू और सिगरेट से होती है और इन खतरनाक नशीले पदार्थो को बनाने और बेचने वाली लॉबी इतनी ताकतवर है कि इसे आसानी से बंद नहीं करवाया जा सकता। इसके बावजूद उन्होंने इस लॉबी से लड़ने का बीड़ा उठा लिया। उनके पास सबसे ज्यादा मरीज मध्य प्रदेश से आते थे, इसलिए शुरुआत वहीं से की। ठीक हो चुके भोपाल के अपने कुछ मरीजों के साथ वह प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास जा पहुंचे। अपने प्रदेश के कैंसर पीड़ितों का आंकड़ा सुनकर चौहान की आंखें फटी रह गईं। यह पहला प्रदेश था जहां मुख्यमंत्री के स्तर से गुटखे पर प्रतिबंध का फैसला लिया गया। इसके बाद वह केरल जा पहुंचे। वहां के मुख्यमंत्री ओमान चांडी को ऐसे ही उदाहरण देकर प्रतिबंध के लिए राजी किया। फिर महाराष्ट्र और बिहार में भी ऐसे ही सफलता हासिल की। इस प्रकार एक के बाद एक प्रदेशों में अपने स्थानीय मरीजों को सामने कर वह प्रतिबंध के आदेश निकलवाते रहे और गुटखा लॉबी हर प्रदेश में प्रतिबंध को कानूनी चुनौती देती रही। लेकिन टाटा अस्पताल के वायस ऑफ टोबैको विक्टिम कैंपेन के जरिये वह इन कानूनी चुनौतियों से लड़ने में भी हर प्रदेश प्रशासन को मदद करते रहे। इस मुहिम का ही परिणाम है कि आज ज्यादातर प्रदेशों में पान की दुकान से गुटखा गायब हो चुका है। चतुर्वेदी कहते हैं कि इससे कम से कम बच्चों की निगाह में गुटखा नहीं आता। बच्चों की लत छूटेगी तो कुछ वर्ष बाद गुटखे के मरीजों की संख्या भी कम होने लगेगी।

Courtesy : Jagran

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