प्यार नितांत निजी भाव है और हर व्यक्ति पूरी तरह से स्वतंत्र है कि वह किससे भावनात्मक तौर पर जुड़े'.. परंतु जब 'प्यार' को 'शादी' में ट्रांसलेट करने का प्रयास किया जाता है तो ढेरों वर्जनाएं, नियम, शर्ते और अपेक्षाएं सामने आती हैं, क्योंकि 'शादी' तो पारिवारिक और सामाजिक स्वीकृति का आयोजन है।
प्रेम का मनोविज्ञान बड़ा जटिल है और बेहद इंडीविजुअलिस्टिक भी, जो पूरी तरह निर्भर है व्यक्ति विशेष की सोच पर। उलट उसके प्रेम का एक रूप यह भी है कि ऐन शादी के वक्त ''मैं इससे शादी नहीं करूंगी/करूंगा'' का ऐलान..। कल्पना कीजिए पूरे परिवार की मानसिक और सामाजिक स्थिति की। घर के एक सदस्य का प्यार मानो पूरे परिवार का 'अपराध' बन गया हो।
अप्रिय स्थिति न आने दें
इस तरह की परिस्थिति एकाएक जन्म नहीं लेती। आपको इसके सिग्नल तो पहले से ही मिले होंगे, लेकिन हम उन्हें अनदेखा कर देते हैं। हमारा अति आत्मविश्वास कि 'शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा' या 'नया घर और जीवनसाथी पुरानी यादों को रिप्लेस कर लेगा' असफल हो जाता है।
क्या करे परिवार
-'प्रेम' के प्रति अपने सदस्य की गहराई और जुनून को समझने का प्रयास करें।
-बेवजह विरोध न करें। यदि थोड़ा भी अनुकूल है तो इस रिश्ते को आगे बढ़ाएं। खुला, लचीला व व्यवहारिक तरीका चुनें।
-कहीं और शादी कर देना पेन किलर मेडिसिन नहीं है। याद रखिए इससे पूरे परिवार का सिरदर्द बढ़ सकता है।
-यदि परिवार को लगता है कि बेटे/बेटी का झुकाव सर्वथा अनुपयुक्त है तो कॅरियर व अन्य क्षेत्रों के लिए प्रेरित करें, ताकि उसे पुर्नविचार का पर्याप्त समय मिल सके।
कनफ्यूजन या कनक्लूजन
खुद को दो स्थितियों और दो विकल्पों में झुलाते रखना आज के युवा का पैशन बन गया है। प्यार के 'क्लाइमेक्स' का इंतजार करके आप अपने साथ अपने परिवार को भी परेशान कर रही/रहे हैं।
क्या करें युवा
-याद रखिए 'प्यार' को प्लान नहीं किया जा सकता। यह आपकी 'जॉब' नहीं है, जिसमें आप 'पैकेज' पर फोकस करें। यह फीलिंग्स का मामला है। यदि स्ट्रांग है तो आगे बढ़ें नहीं तो विश्वस्त की सलाह लेकर निर्णय लें।
-जब आपको अपने साथी और स्वयं की भावनाओं की इंटैनसिटी न पता हो तो कुछ समय के लिए अलग हो जाएं।
-शादी जैसे लाइफ टाइम डिसीजन के लिए परिवार, पैसा, कॅरियर और 'एक व्यक्ति के तौर' पर साथी का व्यक्तित्व बहुत महत्वपूर्ण है। सिर्फ प्यार के सहारे नहीं जिया जा सकता।
-खुद की रीप्रोग्रामिंग करें। ऊंचा लक्ष्य बनाएं और उसे पाने के लिए जुट जाएं। आपका 'प्यार' ऊर्जा देने के लिए आपकी यादों और अनुभवों में जिंदा है।
कैसे जियूं तुम बिन..
मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं जी सकती/सकता.. क्या तुम मेरे बिन जी लोगे.. ये 'वो' वाक्य हैं, जो हर प्रेम कहानी का हिस्सा होते हैं..। ज्यादातर लोगों के ये वाक्य उनकी कहानी के साथ धुआं हो जाते हैं..। परिपक्व और संवेदनशील लोग इसे एक 'मीठी याद' बना प्रेरणा में बदल डालते हैं। ध्यान रखिए.. प्यार करते हैं तो करते रहिए। उसे 'फांस' न बनाइए। प्रेम को खोने-पाने के स्तर से ऊपर उठाएं। हमेशा 'प्यार' शादी में तब्दील होगा यह जरूरी नहीं।
प्यार मुड़कर देखे तो
सालों बीत जाते हैं, सुखी और खुशहाल गृहस्थी है.. एकाएक गुजरा हुआ वक्त फिर सामने आता है, भावनाएं जाग जाती हैं उसको सामने पाकर.. दिल मचल उठता है 'दोबारा' वही जीने के लिए.. संयत कीजिए खुद को।
-अनदेखा न करें पुराने रिश्ते को..। औपचारिक संबोधन के साथ पुन: पैक करें एयर टाइट कंटेनर में ताकि उसकी महक का असर वर्तमान पर न पड़े।
-न डिस्टर्ब करें.. न डिस्टर्ब हों, थोड़ा कठिन है इसका एप्लीकेशन, पर असंभव नहीं।
-फोन करने व मिलने का बहाना न ढूंढ़ें.. बहुत सहजता के साथ हैंडिल करें अपने इमोशन्स को।
-ध्यान रखिए.. आप परिवार की गरिमा हैं। अपने साथी के प्रति 'ईमानदारी' आपका पहला दायित्व है।
'शादी' हो ही गयी तो
कुछ ऐसी परिस्थितियां बनीं और आपको अनचाही शादी करनी पड़ी तो कुछ बातें ध्यान रखें।
-शादी.. 'शादी' होती है लव या अरेंज नहीं। शादी के बाद की दुनिया में हर रंग और इमोशन एक सा होता है। चाहे साथी आपने चुना हो या परिवार ने।
-शादी के बाद अपने जीवनसाथी के प्रति किसी भी तरह का 'रिवेंज एटीट्यूड' न रखें।
-खुद को मानसिक तौर पर तैयार करें। आपने 'शादी' की है तो पूरी शिद्दत के साथ निभाइए और आत्मसात कीजिए।
-प्यार, पहला या दूसरा नहीं होता। आपके जीवन में कोई और था इसका अर्थ यह नहीं कि आप किसी और से जुड़ नहीं सकती/सकते।
-'पर्सनल एक्सेपटेंस' में थोड़ा वक्त लगता है, पर अपने मनोभावों का असर अन्य संबंधों पर न पड़ने दें।
-सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शादी के बाद जीवन में दुविधा का कोई स्थान न हो..।
(डॉ. लकी चतुर्वेदी बाजपेई
साइकोलॉजिकल काउंसलर व
कार्पोरेट ट्रेनर)
(jag.)