शादी के दो-तीन महीने बाद ही मुझे पता चला कि बात-बात पर गुस्सा होना इनकी आदत में शुमार है। हर बात पर गुस्सा होना और कमियां निकालना इनकी आदत थी। एक दिन यह देर रात घर आए तो मैंने इनसे देर से आने का कारण पूछा। इस पर यह गुस्से में बोले कि जरूरी नहीं है कि मैं हर जगह तुम्हें बताकर जाऊं। इस पर मैं चुप हो गई।हालांकि मैं यह सोचने लगी कि अगर बताकर जाते तो क्या चला जाता। हमारी बोलचाल भी बंद हो गई। मेरी एक आदत थी कि मैं रोज डायरी लिखती थी। एक रात जब मैं डायरी लिखने बैठी तो उसमें एक कागज रखा हुआ था। कागज में लिखा था कि मैं नहीं जानता था कि तुम इतनी संवेदनशील हो। मेरी हर बात को दिल से लगा लेती हो। मैं तुम्हें यूं घुट-घुटकर मरने नही दूंगा और न ही कभी इतना गुस्सा करूंगा। तब से लेकर आज तक यह कही भी जाते हैं तो मुझे बताकर ही जाते हैं।