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रणनीतिक पैंतरों के चलते लद्दाख से हटे चीनी तंबू

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Tuesday, May 07, 2013
पर प्रकाशित: 08:53:51 AM
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प्रणय उपाध्याय, नई दिल्ली। लद्दाख में भारत और चीनी सेनाओं के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तीन हफ्ते से चली आ रही आमने-सामने की स्थिति खत्म होने के साथ ही दोनों ओर के फौजी दस्ते 15 अप्रैल से पूर्व की स्थिति में लौट गए।

पढ़ें: भारत को मिला सबक

दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) क्षेत्र से कदम पीछे हटवाने और चीनी फौज के तंबू उखड़वाने में जहां चौतरफा कूटनीतिक दबाव काम आया, वहीं चुमार क्षेत्र में भारतीय सेना के रणनीतिक पैंतरे ने भी काम किया। इसके बाद चीन वार्ता की मेज पर आया। हालांकि समझा जाता है कि डीबीओ में चीन ने तंबू हटाए तो भारत ने भी चुमार से अपनी मोर्चेबंदी को बदला है। इसी बीच, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने सलमान खुर्शीद के चीन दौरे की आधिकारिक घोषणा कर दी। खुर्शीद नौ मई को बीजिंग रवाना होंगे। सूत्रों के मुताबिक, गतिरोध के हल के लिए 16 अप्रैल से चली कूटनीतिक और सैन्य वार्ताओं की कवायद में ऐसा मोड़ भी आया जब भारत ने 23 अप्रैल की फ्लैग मीटिंग नाकाम रहने के बाद अपने दस्तों को चुमार क्षेत्र में अग्रिम मोर्चे पर तैनात कर दिया, जो चीन के लिहाज से काफी संवेदनशील माना जाता है।

इस क्षेत्र से चीन का बड़ा क्षेत्र भारत की निगरानी में आता है। चुमार में ऊंचाई भारत के पक्ष में जाती है जहां से चीन का अहम वेस्टर्न हाइवे नजर आता है। भारत के इस रणनीतिक पैंतरे के बाद अगली फ्लैग बैठक चीन की ओर से मांगी गई। हालांकि चीन तब भी इस बात पर अड़ा रहा कि भारत चुमार से हटे और डीबीओ पर वह बाद में फैसला करेगा। वार्ताओं के दौरान भारत ने कूटनीतिक रास्तों से चीन को इसके भी संकेत दे दिए कि भारतीय हद में लगे तंबुओं पर देश में काफी आक्रोश है और इनके रहते कूटनीतिक रिश्ते भी प्रभावित होंगे।

शनिवार से सोमवार तक सीमा पर हुई फ्लैग मीटिंग के बीच सैनिकों की वापसी पर अंतिम मुहर लग गई। रविवार को दोनों पक्षों ने सैनिकों की वापसी कर ली थी। चीन ने डीबीओ के निकट दिपसांग बल्ज क्षेत्र के तिनहान घाटी से फौजी तंबुओं को हटाया। भारत ने चुमार क्षेत्र के डिापुगी अर्ला से मोर्चेबंदी हटाई। चीन क्षेत्र में भारत के कई रणनीतिक बंकरों को भी हटाने की मांग करता रहा है। हालांकि भारतीय खेमे का कहना है कि चीन भी अपने क्षेत्र में ऐसी ही गतिविधियों में लगा है। डीबीओ, फुकचे में बनी सैन्य हवाई पट्टियों पर चीन की आपत्तियों को भी खारिज कर दिया। भारतीय खेमे ने समाधान के फार्मूले पर चीन से किसी सौदेबाजी से भी इन्कार किया। बताया जाता है कि अचानक भारतीय हद में आने को लेकर चीन ने भारत की ओर से सीमा पर किए ढांचागत निर्माण को कारण बताया।

सूत्र बताते हैं कि अगस्त 2010 में भी भारतीय हद में चीनियों ने तंबू लगाए थे, जिन्हें हटवाने में करीब एक माह लग गया था। ज्ञात हो, भारत-चीन के बीच चार हजार किमी से अधिक की वास्तविक नियंत्रण रेखा का बहुत बड़ा क्षेत्र ऐसा है, जिसका निर्धारण दोनों देश अपनी धारणा के अनुसार करते हैं। भारत जहां एलएसी के स्पष्ट सीमांकन का पक्षधर है, वहीं चीन इसके हक में नहीं है।

Courtesy : Jagran

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