मुंबई। बदलते वक्त के साथ फिल्म निर्माण और उसकी तकनीक में आए बदलाव ने बॉलीवुड की तस्वीर ही बदल दी है। इस बदलाव से जहां फिल्म निर्माण आसान हुआ है, वहीं आधुनिक बॉलीवुड में काम न कर पाने का मलाल बीते जमाने की अभिनेत्री माला सिन्हा को भी है। उन्होंने कहा कि आज की जमाने की हीरोइन होने पर उन्हें बेहद खुशी होती।
1950 से 1960 के दौर में अपनी मोहक मुस्कान और दमदार अभिनय से बॉलीवुड पर राज करने वाली 76 वर्षीय माला सिन्हा ने कहा,' हमारे जमाने की तुलना में आज मायानगरी में तकनीक के मामले में बहुत फर्क आया है। हमारे समय में फिल्म निर्माण की प्रक्रिया बहुत धीमे होती थी। आज तकनीक बहुत विकसित हो गई है। काश मैं आज के जमाने की हीरोइन होती।'
उन्होंने यह बात गुरुवार को दादा साहब फाल्के अकादमी पुरस्कार को लेकर आयोजित संवाददाता सम्मेलन के दौरान कही। वैसे अभिनेत्री की आज की मायानगरी का हिस्सा बनने की एक वजह इन दिनों मिलने वाले अवार्ड भी हैं। सौ से ज्यादा फिल्मों में काम करने वाली माला सिन्हा ने कहा, 'मैं टीवी पर हर सप्ताह कोई न कोई अवार्ड समारोह देखती हूं, लेकिन हमें अवार्ड मुश्किल से ही मिल पाते थे। फिल्मफेयर अवार्ड के लिए हमें इंतजार करना पड़ता था, लेकिन आज के समय में बहुत सारे अवार्ड प्रदान किए जाते हैं। काश मैं आज के जमाने की हीरोइन होती और आप सब मुझे हर चैनल पर अवार्ड लेते देखते।' उन्हें आगामी 30 अप्रैल को भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए फाल्के आइकान सिने आर्टिस्ट अवार्ड प्रदान किया जाएगा। यह अवार्ड दिए जाने पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की।
उन्होंने हिंदी के अलावा बांग्ला और नेपाली भाषा की फिल्मों में भी काम किया है। फिल्म प्यासा (1957), धूल का फूल (1959), दिल तेरा दीवाना' (1962), गुमराह (1963), हिमालय की गोद में' (1965), आंखें (1968) उनकी यादगार फिल्में हैं।