राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : सूचना क्रांति के इस जमाने में आम लोगों के बीच चिट्ठियां लिखने का चलन भले बेहद कम हो गया हो, लेकिन हुक्मरानों के बीच यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। खासकर, सूबे की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को तो इस काम में महारत हासिल है। बीते कुछ समय में उन्होंने केंद्र सरकार को एक दर्जन से ज्यादा खत भेजे हैं। यह दीगर बात है कि इनसे मुख्यमंत्री का सियासी ताकत के प्रदर्शन का मकसद भले पूरा हुआ हो, लेकिन उन समस्याओं का समाधान नहीं हो पाया, जिनकी खातिर उन्होंने ये पत्र भेजे थे।
पिछले साल वसंत विहार दुष्कर्म कांड के बाद दीक्षित द्वारा प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह व गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को लिखे गए पत्र को लेकर बड़ा हंगामा रहा। खासकर दीक्षित द्वारा दिल्ली के पुलिस आयुक्त नीरज कुमार को हटाने की मांग को लेकर सियासत खूब गरमाई। इस चिट्ठी से पुलिस आयुक्त भले ही न हटाए गए हों, लेकिन पूरी दिल्ली में मुख्यमंत्री यह संदेश देने में जरूर कामयाब रहीं कि वह शहर के लोगों के साथ हैं।
मुख्यमंत्री ने केंद्रीय करों में दिल्ली का शेयर बढ़ाने के लिए पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को चिट्ठी लिखी। उनसे कहा कि बीते दस साल से दिल्ली का शेयर 325 करोड़ रुपये बना हुआ है। इसे बढ़ाया जाए। लेकिन दिल्ली के शेयर में कोई वृद्धि नहीं हुई।
दीक्षित ने बिजली और पानी को लेकर भी केंद्र को खूब चिट्ठियां भेजी हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री, केंद्रीय जल संसाधन मंत्री, केंद्रीय ऊर्जा मंत्री सबको अलग-अलग पत्र भेजकर दिल्ली की समस्याओं से अवगत कराया। पिछले दिनों केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को लिखे पत्र में उन्होंने दिल्ली को सस्ती बिजली दिलाने की मांग की और केंद्रीय सहायता राशि देने का भी आग्रह किया। यह दीगर बात है कि सिंधिया ने भी दिल्ली को कुछ दिया नहीं।
मुनक नहर से दिल्ली को 80 एमजीडी अतिरिक्त पानी दिलवाने के लिए दीक्षित ने प्रधानमंत्री व केंद्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत को पत्र भेजा। मुनक के मामले में तो उन्होंने प्रधानमंत्री डॉ. सिंह से यह अपील भी की कि वे इस मामले में मंत्रियों के एक नए समूह का गठन करें ताकि लंबे समय से लटके इस मामले का निपटारा हो सके। उन्होंने रावत से भी इस मामले में पड़ोसी हरियाणा को जरूरी कदम उठाने के निर्देश देने की मांग की थी।
दिल्ली सरकार के आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि यह बात सही है कि मुख्यमंत्री द्वारा लिखे गए पत्र पर केंद्र आनन-फानन में कोई निर्णय नहीं लेता, लेकिन ऐसा नहीं है कि इन पत्रों का कोई मतलब नहीं है। इनके माध्यम से मुख्यमंत्री ने हमेशा केंद्र के सामने दिल्ली के मामलों की आवाज बुलंद की है और कई मामलों में उन्हें सफलताएं भी मिली हैं।