विजय कुमार राय: भारतीय सिनेमा जगत के भीष्म पितामह कहें जाने वाले सत्यजित-रे ने सिनेमा-जगत को जनमाध्यम का सशक्त माध्यम बताया और इसके कारण व महत्तव को दर्शाया। उनका मानना था कि एक फिल्म चित्र हैं जो लोगों को चित्रों के माध्यम से मंनोरंजन देता हैं, फिल्म शब्द हैं, फिल्म आन्दोलन हैं, फिल्म नाटक हैं, फिल्म संगीत हैं, फिल्म एक कहानी हैं जो किसी के जीवन पर आधारित होती हैं जीवन का एक साक्ष्य आधार है।
लेकिन मेरा माना हैं कि फिल्म एक ऐसा माध्यम हैं जिसमे यथार्थ को हूबहू पेश किया जाता हैं। जो समाज के अन्दर घटता हैं वही फिल्म बनती हैं।
सिनेमा को व्यवसाय के रूप में स्थापित करने का श्रेय ल्यूमिए बंधुओं को जाता हैं जिन्होंने पिछली शताब्दी के अन्य दशक में व्यवसायिक प्रदर्शन द्वारा दर्शकों को चमत्कृत कर दिया था।
जिसके लिए सिनेमा कम्पनियां आज भी ल्यूमिए बन्धुओं की कर्जदार हैं। फिल्म जगत की नई क्रांति का प्रभाव भारत पर भी पड़ा। मई 1913 में दुंदीराव गोविदं फाल्के की मूक फिल्म राजा हरिश्चन्द्र, से भारत में फिल्म निर्माण शुरू हुआ जो पौराणिक कथाओं पर आधारित था।
14मार्च 1931 में आलमआरा ने भारतों में सवाक फिल्मों के युग की शुरूआत की। आज के वर्तमान युग में बॉलीबुड की बात करें तो भारत आज विश्व में फिल्म निर्माण के क्षेत्र में अग्रणी तथा सम्मान जनक स्थान पर हैं।
भारत में सिनेमा की पृष्ठभूमि की बात करें तो भारत में सिनेमा की शुरूआत भारतीय नाट्यकला एंव थियेटर से काफी जुड़ी रही हैं। मूक फिल्म राजा हरिशचंद्र कि निर्माण के पूर्व भी भारतीय नाट्यकला काफी लोकप्रिय थी। जियका ज्वलन्त उदाहरण नीलदर्पण नाटक का मंचन हैं। सन् 1876 में लखनऊ थियेटर में दीनबंधू नाटक नीलदर्पण की प्रस्तुती की गयी थी। जिसमें ब्रिटिश अधिकारियों के अवगुणों को दिखाया गया था।
इसके बाद भारतीय सिनेमा ने राजनीतिक दृश्य को अपनाया। धीरे-धीरे भारतीय सिनेमा में बदलाव आया, समाज में घटित होने वाले ज्वलंत मुद्दों पर फिल्म के माध्यम से संदेश देने का चलन शुरू हुआ। जैसे थ्री-इडियट,ब्लैक, द-डर्टी पिक्चर, तारे जमीं पर, स्वदेश इत्यादि फिल्में भारत में बनायी गयीं हमेशा लोगों के दिल को छू लेने का काम किया हैं।
यदि हम भारतीय सिनेमा के वर्तमान युग की बात करें तो वही बीते कुछ वर्षों में बॉलीवुड में काफी फिल्मों में बदलाव आया हैं। म्यूजिक इंडस्ट्री भी इससे अछूती नहीं रही हैं। वही नये गायक व गायिकाओं ने तेजी से संगीत की दुनिया में नया मुकाम बनाया हैं।
एक समय था जब संगीत की दुनिया पर मन्नाडे, मुकेश मोहम्मद रफी, लतामंगेशकर, आशा भोसले, अनुराधा पोडवाल, समीर कुछ चुनिदा गायक व गायिकाओं का राज हुआ करता था। वही शिल्पा राव, शेफाली, श्रेया घोसाल, हनी सिंह, जैसी पाश्र्व गायिकाओं ने अपनी खनकती और मधुर आवाजों से लोगों को अपना दिवाना बना दिया हैं।