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पाकिस्तान में हुए सितम की कहानी, वतन लौटे लोगों की जुबानी

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Friday, May 03, 2013
पर प्रकाशित: 13:30:13 PM
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नई दिल्ली, नव न्यूज नेटवर्क। कभी वे भी अभागे सरबजीत की तरह पाकिस्तान की जेलों में बंद थे। किस्मत अच्छी थी कि लौट आए। आज उनकी रूह कांप उठती है वे सारे जुल्म-ओ-सितम याद करते हुए, जो उन्होंने वहां पर सहे। पंजाब, बंगाल व उत्तर प्रदेश के रहने वाले ये लोग सरबजीत की मौत से आहत तो हैं ही, भारत सरकार के रवैये से भी कम क्षुब्ध नहीं हैं। सबका एक सुर में कहना है कि सरकार चाहती तो आज सरबजीत जीवित अपने परिवार के बीच होते।

लुधियाना के पुरुषोत्तम सिंह का कहना है कि 1973 में वह जासूस के तौर पर सेना में भर्ती हुए थे। 1974 में भिखीवंड कालड़ा छीना पोस्ट से वतन लौट रहे थे। रास्ते में पाकिस्तान की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें सबसे पहले उसी कोट लखपत जेल में रखा गया, जहां सरबजीत बंद थे। बाद में दूसरे जेलों में भी भेजा गया। 14 अगस्त, 1986 को उन्हें रिहा कर दिया गया। करीब 12 सालों तक जेल में अनेक यातनाएं सहने वाले पुरुषोत्तम कहते हैं-'मुझे वहां अंधेरी कोठरी में रखा गया था, जहां दिन भर सिर्फ गालियां और दो रोटियां मिलती थीं। कभी कोठरी से बाहर निकलते तो पाकिस्तान के कैदी सेल में मारने को आ जाते।' वह याद करते हैं-'कई कैदी तो सिर्फ हम लोगों से बदला लेने के लिए ही जेल में आते थे। जेल में सरबजीत की पिटाई का मामला नया नहीं है, इससे पहले मुझ पर भी कई हमले हुए थे, लेकिन भगवान की कृपा थी कि मैं बचता रहा।'

वहीं, पाकिस्तान में लगभग 30 साल की कैद काटकर कुछ महीने पहले भारत लौटे सुरजीत सिंह भी सरबजीत की मौत से काफी आहत हैं। फिरोजपुर के गांव फिड्डा के रहने वाले सुरजीत का कहना है कि सरकार पाकिस्तान पर दबाव नहीं बना पाई, जिससे यह हादसा हुआ। उन पर भी वहां की जेलों में खूब जुल्म ढाए गए। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ पर तीखे हमले करते कहा कि सरबजीत की मौत के पीछे भी इसी का हाथ है। इसी तरह, करीब दो महीने पहले कोट लखपत जेल से करीब 16 साल की सजा के बाद वापस आए गुरदासपुर के गांव अहमदबाद निवासी अशोक कुमार का कहना है कि वहां भारतीय कैदियों को जेलकर्मी बेरहमी से पीटते हैं। गुरदासपुर के ही कस्बा भैणी मियां खां के गोपाल दास का दर्द भी कुछ ऐसा ही है। वह वहां की जेलों में 27 साल कैद काटकर मार्च, 2011 में रिहा होकर भारत लौटे हैं। वह करीब तीन साल तक सरबजीत के साथ जेल में रहे हैं।

करीब पांच साल पहले कोट लखपत जेल से ही छूटकर आए होशियारपुर के गांव नंगल खिडारियां के कश्मीर सिंह सरबजीत सिंह की मौत से दुखी हैं। वह कहते हैं कि फिर किसी को वहां की नरक न नसीब हो। दूसरी तरफ, पाकिस्तान की कई जेलों में करीब बीस सालों तक बंद रहे कोलकाता निवासी भारतीय जासूस महबूब इलाही को भी वहां के खौफनाक मंजर याद हैं। बिजनौर, उत्तर प्रदेश के मनोज रंजन दीक्षित भी रॉ एजेंट के रूप में पाकिस्तान गए थे। पकड़े जाने पर 13 सालों तक वहां की जेलों में बंद रहे। उनका कहना है कि जेल में कैदियों से इतना बुरा बर्ताव किया जाता है कि वे पागल हो जाते हैं।

Courtesy : Jagran


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