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छावनी के साथ ही रख दी थी सदर बाजार की नींव

गाजियाबाद, Viewed [ 8 ] , Rating :
     
, Star Live 24
Saturday, May 04, 2013
Published On: 02:25:00 AM

मेरठ : जिस सदर बाजार को सुव्यवस्थित करने की दिशा में कवायद की जा रही है, उस बाजार की नींव मेरठ में छावनी के ले-आउट खींचने के साथ ही रख दी गई थी। 1806 के आसपास से ही सदर बाजार का भी अस्तित्व है। यह बाजार पूरी तरह से भारतीय फौज की जरूरतों की पूर्ति के लिए बसाया गया था।

मेरठ में छावनी की स्थापना के समय ही तय कर दिया गया था कि भारतीय फौज आबू नाले के एक ओर होगी। चूंकि उस समय रसद सप्लाई के लिए आर्मी सप्लाई कोर या इस तरह के किसी कोर की व्यवस्था नहीं थी। अंग्रेज अपने लिए थोक में सामान खरीदते थे और भारतीय फौजियों को स्वयं ही राशन आदि की व्यवस्था करनी होती थी। यहां तक वर्दी भी उन्हें स्वयं ही सिलवानी पड़ती थी। ऐसे में इन सभी आवश्यकताओं की पूर्ति सदर बाजार में ही होती थी। जैसे-जैसे छावनी बसी और दिन बीते, सदर बाजार भी सजता-संवरता गया। इस बाजार को स्थापित करने के पीछे एक और बड़ी वजह यह भी थी कि अंग्रेजी अफसर नहीं चाहते थे कि भारतीय फौजियों को रोज सामान के लिए शहर में आना-जाना पड़े। वे उन्हें सीमित रखना चाहते थे। यही वजह है कि एक ओर थोक बाजार तो दूसरी ओर खुदरा बाजार स्थापित किया गया। इसी दौरान सदर बाजार में कई मोहल्ले भी डेवलप हुए, जो आज भी अपने पुराने नाम से ही जाने जाते हैं। हेरिटेज सोसाइटी के डा. अमित पाठक तो यह भी बताते हैं कि जहां आज सर्राफा है, वहां कई लोग उस जमाने में बैंकर की भूमिका निभाते थे।

क्रांति का हिस्सेदार बना था सदर

समय के साथ सदर बाजार डेवलप हुआ। यहां बाजार के साथ ही लोग रहने भी लगे और एक बड़ी बस्ती सी बस गई। जब चर्बी वाले कारतूस चलाने से मना करने पर भारतीय फौजियों का कोर्ट मार्शल के नाम पर अपमान किया गया तो सदर बाजार के व्यापारियों और यहां रहने वाले लोगों ने भी क्रांति की मशाल उठाने में बराबर का साथ दिया था। चूंकि बाजार के व्यापारियों का भारतीय फौजियों से संपर्क था और वे लगातार हो रहे डेवलपमेंट के बारे में जान रहे थे, ऐसे में मौका लगते ही व्यापारियों ने भी क्रांति की मशाल थाम ली और रणभूमि में कूद पड़े।

बंद कर दिया था उधार में राशन

1857 के अनुभवों के बारे में एक अंग्रेज अफसर तो यहां तक लिखते हैं कि जैसे ही क्रांति की अलख जगी, वही व्यापारी जो क्रेडिट में असीमित माल देने को तैयार होते थे, उन्होंने उधार देना बंद कर दिया था। इसके पीछे तर्क दिया गया है कि व्यापारियों को पूरा विश्वास था कि क्रांति हो चुकी है और अंग्रेजों का पलायन तय है। ऐसे में अगर उन्होंने उधार दिया तो पैसे डूब जाएंगे।

Courtesy : Jagran

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